आओ चलो करें तय..
एक आम इंसान का सफ़र..
जब जब घर से निकलता..
माथे पर तिलक या बाजुओं में फकीर के तावीज़ में
माँ के भरोसे का संग संग चलता..असर |
ऐसे एक आम इंसान का सफ़र.
सड़कों से सॅटी दीवारों पर चिपके फिल्मी पोस्टरों के नायक में खुद को ढूंढता.
कानो को भाए नुक्कड़ पर गूँजता रेडीओ का मध्यम स्वर...
दुनिया को अपने पेरो से पीछे छोड़ने का कर के प्रण
हर दिन चल पड़ता है जो..
मिटाने किस्मत मे लिखी विवस्ता के कहर का असर ...
ऐसे एक आम इंसान का सफ़र..
आओ चलो करें तय..एक आम इंसान का सफ़र..
घर मे बचों की भीड़ .. तो बाहर लोगों की...
तन्हाइयों में भी जिसे चैन मिलता ऩही
की घेरे रहती है यहाँ भी तो..
चिंता...
रोटी कपड़े और मकान की...
ऐसे एक आम इंसान का सफ़र.
बच्चों की मासूम ख्वाईसैं हों या फिर .. बीवी के खाली हाथ
गाँव से आई पिता की मजबूरियों की चिट्ठी
कर दे पूरी ये भी हर आस जो भी है अधूरी ..
आसू बिक सकते बाजार मे काश ! जो इसके भी अगर..
हाँ यही है एक आम इंसान का सफ़र...
आओ चलो करें तय..एक आम इंसान का सफ़र..
ऐसा नही की ..
नही तड़प उठता है, इसका दिल भी
जब जब सुने...
भरस्टचार के किस्से...
बेआबरू होती माँ - बहनो की बाते..
खोलता है खून इसका भी
हुंकार भर ले ये भी
मगर...
अपने, अपनों की सलामती की चाह में..
घुट गयी है .. दब गयी है..
ये क्रांति वाली हलक...
सामाजिक मुद्दे उठाते अख़बारों को समेटे
रद्दी वालों से करता मोल भाव...
ऐसे आम इंसान का सफ़र..
थक कर मौत में सहारा ढून्डता..
पर अगले ही पल..
जिंदगी के लिए दौड़ना पड़ता है जिसे चारो पहर..
आओ चलो करें तय..एक आम इंसान का सफ़र..
By - Krishna Kumar Vyas
May 16, 2010एक आम इंसान का सफ़र..
जब जब घर से निकलता..
माथे पर तिलक या बाजुओं में फकीर के तावीज़ में
माँ के भरोसे का संग संग चलता..असर |
ऐसे एक आम इंसान का सफ़र.
सड़कों से सॅटी दीवारों पर चिपके फिल्मी पोस्टरों के नायक में खुद को ढूंढता.
कानो को भाए नुक्कड़ पर गूँजता रेडीओ का मध्यम स्वर...
दुनिया को अपने पेरो से पीछे छोड़ने का कर के प्रण
हर दिन चल पड़ता है जो..
मिटाने किस्मत मे लिखी विवस्ता के कहर का असर ...
ऐसे एक आम इंसान का सफ़र..
आओ चलो करें तय..एक आम इंसान का सफ़र..
घर मे बचों की भीड़ .. तो बाहर लोगों की...
तन्हाइयों में भी जिसे चैन मिलता ऩही
की घेरे रहती है यहाँ भी तो..
चिंता...
रोटी कपड़े और मकान की...
ऐसे एक आम इंसान का सफ़र.
बच्चों की मासूम ख्वाईसैं हों या फिर .. बीवी के खाली हाथ
गाँव से आई पिता की मजबूरियों की चिट्ठी
कर दे पूरी ये भी हर आस जो भी है अधूरी ..
आसू बिक सकते बाजार मे काश ! जो इसके भी अगर..
हाँ यही है एक आम इंसान का सफ़र...
आओ चलो करें तय..एक आम इंसान का सफ़र..
ऐसा नही की ..
नही तड़प उठता है, इसका दिल भी
जब जब सुने...
भरस्टचार के किस्से...
बेआबरू होती माँ - बहनो की बाते..
खोलता है खून इसका भी
हुंकार भर ले ये भी
मगर...
अपने, अपनों की सलामती की चाह में..
घुट गयी है .. दब गयी है..
ये क्रांति वाली हलक...
सामाजिक मुद्दे उठाते अख़बारों को समेटे
रद्दी वालों से करता मोल भाव...
ऐसे आम इंसान का सफ़र..
थक कर मौत में सहारा ढून्डता..
पर अगले ही पल..
जिंदगी के लिए दौड़ना पड़ता है जिसे चारो पहर..
आओ चलो करें तय..एक आम इंसान का सफ़र..
By - Krishna Kumar Vyas
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