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Sunday, April 8, 2012

कभी कभी ज़िंदगी तुझे.... बेहद करीब से जान लेना... भी अच्छा नही होता|

हर सवाल का जवाब शोलों पर पानी सा रहम दिल नही होता,
कभी कभी ज़िंदगी तुझे, बेहद करीब से जान लेना,... भी अच्छा नही होता|
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दुश्मन, दुश्मन है...
पर अपने - अपनो सा बेगरत नही...

और ए मुसाफिर,
जब धंसा हो खंजर... पीठ पर,
तो दिल के लिए,
कातिल का पता पूछना... भी अच्छा नही होता|
कभी कभी ज़िंदगी तुझे....
बेहद करीब से जान लेना... भी अच्छा नही होता|

जब खुदा समझ कर खा चुका है धोखा किसी से,

तो अब रहम कर उन पर,
जो तुझे खुदा समझते हैं,
की जब ना हो पता मज़िल का,
तो ए मुसाफिर,
कदमों के निशाँ पीछे छोड़ना अच्छा नही होता..

कभी कभी ज़िंदगी तुझे....
बेहद करीब से जान लेना... भी अच्छा नही होता |

जी सकें कुछ मुखौटो के साथ,
जो किस्मत ने थोप दिए हैं,
कभी कभी हक़ीकत और जमीर से,
पर्देदारी भी ज़रूरी है|

जहाँ बिक जाते हैं,
हाकिम और खुदा पैसों की खनक पर,
ए मुसाफिर, वहाँ....सेहत के लिए
काफ़िर होना अच्छा नही होता..

कभी कभी ज़िंदगी तुझे,
बेहद करीब से जान लेना भी अच्छा नही होता|

कौन समझेगा तेरी सिसकियाँ
इस आडंबर के कोलाहल भरी दुनिया मे?

तेरी हर "आह" को लोग तालियों से मसल देंगे,
कांधा देने की जगह, तेरे अश्कों को,
वाह वाह के शोर से कुचल देंगे,
इल्ज़ाम भी लगेगा तुझ पर,
दिल के जज्बातों की तिजारत का,
और तेरे ही टूटे ख्वाबों की मज़ार को,
तेरा हुनर कह देंगे..
हर वक़्त ए मुसाफिर, रोक कर छलकते अश्कों को
शायरी में पिरोते रहना  भी अच्छा नहीं होता

कभी कभी ज़िंदगी तुझे,
बेहद करीब से जान लेना,... भी अच्छा नही होता|

By: Krishna Kumar Vyas
(Eak Musafir) Dated: 06 April 2012
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