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Wednesday, July 6, 2011

में भी सदियों तरसा सावन के लिए

वो जन्मों की प्यासी थी ...
में भी सदियों तरसा सावन के लिए ,
खुदा भी
कुछ उब चूका था फरियादों से हमारी
हुई महार उसकी ..
और , एक मोड़ पे हमें ...
उनका हमराह कर दिया

मैं अब उसके आंसुओं से अपनी आग बुझाता हूँ
वो मेरे अस्कों से अपने बंजर पे नए फूल उगती हे

By Krishna Kumar Vyas (Ek Musafir Ek Soch) Dated 06 Jul 2011

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