कभी वो हमारे कंधो को अपना घर कह्तेथे,
दिल में धडकनों की जगह,
हम से वो जिन्दा रहते थे।
अब बेरुखी
बढ़ गयी हे इतनी के,
पास से गुजर जाते हैं मगर,
एक पल भी नजरों से तक,
दुआ सलाम करते नहीं।
हम अब सिकायत करैं भी तो
किस से करैं??!
के उनके सिवा किसी और को
"ख़ुदा" भी तो हम कहते नहीं.
दिल में धडकनों की जगह,
हम से वो जिन्दा रहते थे।
अब बेरुखी
बढ़ गयी हे इतनी के,
पास से गुजर जाते हैं मगर,
एक पल भी नजरों से तक,
दुआ सलाम करते नहीं।
हम अब सिकायत करैं भी तो
किस से करैं??!
के उनके सिवा किसी और को
"ख़ुदा" भी तो हम कहते नहीं.
No comments:
Post a Comment