ShareThis

Wednesday, June 29, 2011

किसी और को "ख़ुदा" भी तो हम कहते नहीं

कभी वो हमारे कंधो को अपना घर कह्तेथे,
दिल में धडकनों की जगह,
हम से वो जिन्दा रहते थे।

अब बेरुखी
बढ़ गयी हे इतनी के,
पास से गुजर जाते हैं मगर,
एक पल भी नजरों से तक,
दुआ सलाम करते नहीं।

हम अब सिकायत करैं भी तो
किस से करैं??!

के उनके सिवा किसी और को
"ख़ुदा" भी तो हम कहते नहीं.

kabhi wo hamare kandho ko apna ghar kehtethe,
dil main dhdkano ki jagah,
hum se wo jinda rehte the,

ab berukhi
itni badh gayi hey ke,
paas se gujar jate hain magar,

ek pal bhi najron
se tak dua salam karte
nahi

Hum ab sikayat bhi karain to kis se karain...
ke unke siwa kisi or ko,
"Khuda" bhi to hum kehte nahi.

No comments: