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Sunday, August 28, 2011

शायर का क्या है....

शायर का क्या है....
नज़ूक दिल है...
परवाह ना करना...
टूट जाए ...या फिर खुशी मिले कोई...
शायर का दिल है,
आँखे छलक ही आती हैं|

कौन समझा है जो अब समझ जायगा,
दिल रोता है तो रोने दे...खुद ही बहल जायगा
शायर का दिल है...
गुबार गर बढ़ भी गया...तो फ़िक्र ना कर,
अल्फ़ाज़ बन किताबों पर उतर आएगा|
शायर का दिल है|

Monday, August 15, 2011

आजादी के आज नारे तो खूब लगा लेंगे|

हम आजाद हैं 
ऐसे आजादी के नारे खूब लगा लेंगे
हे १५ Aug  तो फिर रिवाज ऐ जस्न मना लेंगे

पर एक नजर अपने जमींर भी ड़ाल देना कम से कम आज मगर
मन के आईने मैं झांक लेना एक पल को आज फकत्त

हम जो अब भी गुलाम हैं
भ्रस्टाचार के,
स्वार्थ भरे अचार के,
ह्रदय में भरे "मैं" और अपने पाप से
कैसे  तिरंगा लहरा लेंगे?

सोचो,
अपनी जो बीत गयी सो बीत गई
 मगर
तिरंगे में सिमटा बीती पीढ़ी का रक्त
और आने वाली पीढ़ी का कल 
क्या सब कुछ  मिटी में मिला देंगे?
आजादी के आज नारे तो खूब लगा लेंगे|
जय हिंद

कैसे मुक्त हो जाऊं फिर

कैसे मुक्त  हो जाऊं फिर|
अपने पाप से कैसे  मुक्त हो जाऊं  फिर||

आसुंओं में नहा कर देखा,
गंगा तट भी जाकर देखा,
ग्लानी अपने कर्मों की नहीं होती फिर भी  छीण|
मन का ये भार कैसे उतारूँ फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|

सोचूं कभी,
धोखा दिया जिन्हें,
अपना बन गैरों  सा घाव दिया जिन्हें,
जिनके संग हर पल मैंने कटुलाई की,
भय निकाल अपने अपने मन का,
अभिमान तज अपने  "मैं"  का
उनके चरणों में गिर जाऊं फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|

आँच सच्चाई की 
उम्र के साथ बढ़ने लगी हे...
अब तो स्वप्न में भी,
कांटो सी...
कर्म की हर स्मृति डसने लगी है
आंसू दे डाले जिनकी आँखों में...
"अन्तविहींन"
उनके होंठो की  कैसे मुस्कराहट बंजाऊं फिर| .
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर|
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर|

वक्त हुआ बहुत दर्पण में खुद को देखे हुए!
जिस पर माँ लेती थी बलाइयां! 
वो मासूमियत!, वो खिलखिलाहट!
वो भोलापन!..वो सच्चाई का नंगापन!
वो चेहरा!...कैसे पाऊं फिर?
कैसे मुक्त  हो जाऊं फिर??

अब आखरी उम्मीद अंतिम यात्रा में ही नजर आती है 
स्वाह करूँ इस पापी तन और मन को 
अपनी ही विवशता के यग्न में,  
अंत - अंत काल तक सो जाऊं फिर ?

कैसे मुक्त  हो जाऊं फिर?
अपने पाप से कैसे  मुक्त हो जाऊं फिर??!

Monday, August 1, 2011

उसे यकींन था, वो ना होगी संग तो क्या!?

उसे यकींन था,
वो ना होगी संग तो क्या!
उसकी यादें तो होंगी ही...
धड़कने बन मुझे "जिन्दा" रखने के लिए

शायद, इसी लिए
रुखसत होते इस जहाँ से....

ना माथे पे थी शिकन उसके..
ना आँखों में ही था कोई आंसू उसके

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"आखरी सांस तक"..

आखरी सांस तक,
वो मुझे हंसने के लिए मनाती रही
मैं करता भी क्या??
मेरी बेबसी मुझे रुलाती रही

"आखरी " पलों  में  ....
वो  संजोना  चाहती  थी, 
मेरा  हँसता  चेहरा  अपनी  पलकों  में ....

नादान!
नादान! समझ न पायी...
के, कैसे पूरी होती उसकी ये ख्य्वाइश भी !!
के, गर होता "दिल"
"उस खुदा" के "सिने" में
तो यूँ "मौत" बन "जुदाई" आती नहीं...
पर शायद...
उसे यकींन था,
वो ना होगी संग तो क्या!उसकी यादें तो होंगी ही...
धड़कने बन मुझे "जिन्दा" रखने के लिए.............

By - Krishna Kumar Vyas
www.eakmusafir.blogspot.com
https://www.facebook.com/groups/eksoch


Use Yakin Tha,
Wo Na hogi sang to kya!
uski Yaadain to hongi hi....
Dhadkane ban Mujhe Jinda Rakhne Ke Liye

Sayad..Isi liye
Rukhsat hote is Jahan Se
Na Maathe pe thi shikan uske
Na aankhon me hi tha koi aansu uske...

Aakhri Saas tak

Aakhri Saas tak
Wo Mujhe Hasne ke liye manati rahi
Main kar ta bhi kya
Meri Bebasi Mujhe Rulati rahi

"Aakhri " palon me ....

Wo Sajona Chahti thi
Mera hasta chehra apni Palkon me....

"naadan " ....
naadan Samajh na paayi

ke, Kaise Puri hoti Uski ye khvyaish bhi ??
Ke Gar Hota Dil
Khuda ke Sine Me Bhi
To Yun Mout Ban Judai Aati Nahi...par saayad
Use Yakin Tha,
Wo Na hogi sang to kya!
uski Yaadain to hongi hi....Dhadkane ban Mujhe Jinda Rakhne Ke Liye

By Krishna Kumar Vyas