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Friday, November 4, 2011

बरसों से जिनका जवाब कभी मिला नही....

ए  मुसाफ़िर कश्मकश मे हूँ में कुछ सवाल लिए,
बरसों से जिनका जवाब कभी मिला नही....


एक तो ये के....
तन्हाइयों का फलसफा है की जो मुझे...
खुदा पे कभी यकीन ना रहा?!!
या फिर के खुदा पे यकीन नही इसी फकत
किस्मत मे तनहाईयाँ लिख दी गयी हैं मेरे!!?

दूजा ये की....
प्यास इतनी बड़ी तो ना थी मेरे दिल की !!
के जो आसमान भी पलट के सिमट गया
या फिर....,
काफ़िरों की किस्मत मे खुदा ने
सुकून का आँचल कोई लिखा ही नही??

कुछ दिनो से
ख्वाब पूछ रहे हैं की जब यकीन था मुझे
की हक़ीक़त की रोशनी मुक़द्दर मे उनके लिखी ही नही मेने
तो उनके वजूद मे आने का क्या सबब?
अजीब इतफ़ाक़ है
बरसों से कुछ एसी ही उलझन मे हूँ में भी
अब तक खुद के जिंदा रहने के सवाल पर...

ए मुसाफ़िर सुना था
बिना अश्कों के इस जहाँ मे खुशियों का सोदा होता नही...
बरसों इस उम्मीद मे रोता रहा हूँ...
फिर क्यों एक अदनि सी मुस्कुराहट का भी फूल कोई खिला नही???

हम राह के नाम पर बस एक परछाई संग चलती है,
पर अजब बात है!!,
कब से रंग भरने की कोशिश कर रहा हूँ अपनी परछाई मे
ना जाने मेरी किस्मत की तरह क्यों कम्बख़्त कालख इसकी भी जाती ही नही..????

कृष्ण कुमार व्यास
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Ae  Musafir Kashmakash me hun main kuch sawal liye,
barson se jinka jawab kabhi mila nahi....

Ek to ye ke....
Tanhayon ka falsafa hey ki jo mujhe...
khuda pe kabhi yakin na raha?!!
Ya fir ke Khuda pe yakin nahi isi fakat
Kismat me tanhaiyan likh di gayi hain mere!!?

Duja Ye Ki....
Pyas Itni Badi to na thi mere dil ki i!!
Ke jo aasman bhi palat ke simat gaya
Ya fir....,
Kafiron Ki Kismat me Khuda ne
sukun ka aanchal koi likha hi nahi??

Ae Musafir Kuch Dino Se
Khwab Puch rahe hain Ki Jab Yakin Tha Mujhe
Ki Haqeeqat Ki Roshni Mukadar me unke likhi hi nahi mene
To Unke Wajodd Me Aane Ka Kya Sabab?
Ajeeb Itafaq Hey
Barson se Kuch Esi Hi uljhan Me Hun Main Bhi
Khud Ke Jinda Rehne Ke Sawal Par...

 Ae Musafir Suna tha
 Bina Askon ke Is Jahan Me Khushiyon Ka Soda Hota Nahi...
Barson is umeed me rota raha hun...
Fir Kun adni si muskurahat ka bhi phool koi khila nahi???

Hum Raah Ke Naam Par Bas Eak Parchai Sang Chalti Hey,
Par Ajab Baat Hai!!!
Kab Se Rang Bharne Ki Koshish Kar Raha hun Apni parchai me
Naa jaane meri kismat ki tarah kyon Kambhakth Kaalakh iski bhi jaati hi nahi???

By: Krishna Kumar Vyas

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