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Wednesday, November 9, 2011

दफ़्न करना मुझे.... तेरे आगोश मे ही|

दर्द बन कर ही सही....मगर रहो मेरे दिल मे ही
अश्क बन कर ही सही....मगर छलकती रहो मेरी आँखों से ही
तू बेवफा ही सही....मगर मेरी सुबह-शाम हो तेरी ज़ुल्फों से ही
और जो गर तू उब गया हो मुझ से खेल कर या अब मंजूर ना हो मेरा जीना तुझे
तो कत्ल कर देना बैशक, मगर.... एक इरतजा है..
दफ़्न करना मुझे.... तेरे आगोश मे ही|

Dard Ban Kar Hi Sahi....Magar Raho Mere Dil Me Hi
Ask Ban Kar Hi Sahi....Magar Chalakti Raho Meri Aankhon Se Hi
Tu Bevafa Hi Sahi....Magar Meri Subah-Sham ho Teri Julfon Se Hi
or Jo Gar Tu Ub Gaya ho Mujh Se Kehl Kar ya ab Manjoor na ho mera jeena tujhe
to Katl Kar Dena Beshak, Magar....Ek Irtaja hey
Dafn Karna Mujhe...Teri Aagosh Me hi|

By Krishna Kumar Vyas(Eak Musafir)

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