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Sunday, September 4, 2011

बेख़ोफ़...आ, और कत्ल कर दे... तू ही मेरा...

बेख़ोफ़...आ, और कत्ल कर दे...
तू ही मेरा...

पर इरतज़ा है...
बेख़ोफ़ ...आ
और वार कर सीने पर...
बेवफा तो तू है मगर ..
कोई ये ना सोचे
के महबूब मेरा बुजदील भी था...

तू परेशान ना हो..हेरान भी ना हो
शायद,
साज़िश ये खुदा की ही होगी...
मेरे क़ाफ़िर पन की भी यही वाजिब सज़ा होगी

जिसके लिए भुला हूँ खुदा को...
खंजर हाथों मे है उसी के
पर इस से खूबसूरत
मौत भी तो और क्या होगी!!
बेख़ोफ़ ...आ
और कत्ल कर दे तू ही मेरा..
पर इरतज़ा है,
आँखों से आँख मिला,
गुमान ही सही ... फ़िर भी शुकून तो होगा
आखरी साँस तक तेरी आखों मे बस मैं ही था...

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