Shukrana Ada Karta Hun...
"Ae Pal Do Pal Ke Saathi"...
Do Pal Tune Saath Diya..
Do Pal Saath Teri Yaadain Dengi...
Fir Jindgani Hoti hi kitni hey.....
(Kuch Yadon ke Panno Se)
jeevan ki raah ke kuch palon ka anubhav...किस्मत के हाथों बँधे इन निगाहों ने ना जाने क्या क्या देखा.. पर देखा जिसे बस खूने जिगर पीते देखा, पहले रोते थे मरने वालों पर... अब आँखें छलक गयी जब किसी को जीते देखा| Kismat ke hathon bandhe in nigahon ne, na jaane kya kya dekha... par dekha jise bas khune jigar pite dekha... pahle rothe the marne valon par.. ab aankhain chalak gayi jab kisi ko jite dekha
Wednesday, July 13, 2011
Shukrana Ada Karta Hun...
Friday, July 8, 2011
आज जब बीती है खुद पर
अक्सर अल्फाजों से...
शेरो और शायरियों ...
लोगों के गमों के बेचा करते थे
तराशते थे अल्फाजों से गमों को इतना की,
लोग कातिल तक कह दिया करते थे..
आज जब बीती है खुद पर
लोग अल्फाजों से कत्ल कर रहे हैं मेरे जज्बातों को
हाथ कलाम छोड़ सर पकड़े बेते हैं
होंठ...
और होंठ..अस्कों को कंधा देते देते
थक गये हैं|
aksar alfajon se...
shero or shariyon...
logon ke gamon ke becha karte the
taraste the alfajon se gamon ko itna
log kaatil tak keh diya karte the..
aaj jab biti hey khud par
log alfajon se katl kar rahe hain mere jajbaton ko
hath kalam chod sar pakde bethe hain
honth...
or honth..askon ko kandha dete dete
thak gaye hain.
By: Krishna Kumar Vyas
Date: 08 Jul 11
शेरो और शायरियों ...
लोगों के गमों के बेचा करते थे
तराशते थे अल्फाजों से गमों को इतना की,
लोग कातिल तक कह दिया करते थे..
आज जब बीती है खुद पर
लोग अल्फाजों से कत्ल कर रहे हैं मेरे जज्बातों को
हाथ कलाम छोड़ सर पकड़े बेते हैं
होंठ...
और होंठ..अस्कों को कंधा देते देते
थक गये हैं|
aksar alfajon se...
shero or shariyon...
logon ke gamon ke becha karte the
taraste the alfajon se gamon ko itna
log kaatil tak keh diya karte the..
aaj jab biti hey khud par
log alfajon se katl kar rahe hain mere jajbaton ko
hath kalam chod sar pakde bethe hain
honth...
or honth..askon ko kandha dete dete
thak gaye hain.
By: Krishna Kumar Vyas
Date: 08 Jul 11
Wednesday, July 6, 2011
में भी सदियों तरसा सावन के लिए
वो जन्मों की प्यासी थी ...
में भी सदियों तरसा सावन के लिए ,
खुदा भी
कुछ उब चूका था फरियादों से हमारी
हुई महार उसकी ..
और , एक मोड़ पे हमें ...
उनका हमराह कर दिया
मैं अब उसके आंसुओं से अपनी आग बुझाता हूँ
वो मेरे अस्कों से अपने बंजर पे नए फूल उगती हे
By Krishna Kumar Vyas (Ek Musafir Ek Soch) Dated 06 Jul 2011
में भी सदियों तरसा सावन के लिए ,
खुदा भी
कुछ उब चूका था फरियादों से हमारी
हुई महार उसकी ..
और , एक मोड़ पे हमें ...
उनका हमराह कर दिया
मैं अब उसके आंसुओं से अपनी आग बुझाता हूँ
वो मेरे अस्कों से अपने बंजर पे नए फूल उगती हे
By Krishna Kumar Vyas (Ek Musafir Ek Soch) Dated 06 Jul 2011
Monday, July 4, 2011
बस सो ही रहे हैं...
आज़ादी,
की लड़ाई की जदो-जहद २०० सालों तक चली,
सायद उसी की थकन हे,
के हम पिछले ६४ सालों से
बस सो ही रहे हैं
इंडिया सब्द के आगे भारत सब्द अब
एक दुसरे देश सा लगता हे,
कोश्ती हे जनता अपने नेताओं को भ्रस्टाचार के नाम पर,
और अपने ही नाकारा बचों के लिए रिश्वत देते इठलाते हैं,
अजब देश हे जहाँ हिंदी बोलने पर
स्कूल में बचे मार खाते हैं।
थकन बहोत हे २०० सालों के गुलामी की
ईसी लिए वोटिंग के दिन को हम
छुटी समझ सो जाते हैं।
कैसे कोई मारे-मरे
देश की सरहदों के लिए!
जहाँ नेता हो या जनता
अपने ही जवानों के राशन और कफ़न का हक भी डकार जाते हैं।
ये देश हे मेरा और लोग भी मेरे अपने हैं,
पर,
कहूँ भी तो किस से अब
होंठ अल्फाज कम और आंसू ज्यादा पिते हैं
एक आस सी थी नयी पीढ़ी से मगर,
बड़ा अजब देश प्रेम हे इनका!!!
जो जस्ने आजादी को पब डिस्को में मानते हैं।
बियर के घूंट से तर गले से...
जय हिंद जय हिंद के नारे लगते हैं।
आज़ादी,
की लड़ाई की जड़ो-जहद २०० सालों तक चली,
सायद उसी की थकन हे,
के हम पिछले ६४ सालों से
बस सो ही रहे हैं
- Krishna Kumar Vyas
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