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Tuesday, November 29, 2011

जिस ज़मीन के टुकड़े के लिए

जिस ज़मीन के टुकड़े के लिए
हम नर मुंडो को बोते हैं बीज की तरह और
खून की नदियाँ बहा देते हैं...
कभी गर उस पर कुछ उगा भी..!!
तो वो चीखों और आहों के सिवा...
और क्या होगा...!!

Jis Jamin Ke Tukde Ke Liye
Hum Nar Mundo Ko bote hain bij ki tarah our
khun ki nadiyan baha dete hain...
kabhi gar us par kuch uga bhi...
to vo chikhon or aahon ke siva
our kya hoga..!!

2 lines From My Poem : Sarhad par jo mara hey
By: Krishna Kumar Vyas

Friday, November 18, 2011

पल का बस एक आवारा पन

वो कशिश वो जुनून ही नही
जिस से साँसे बुनी जाती हैं, मुहोब्ब्त को ज़िंदा रखने के लिए
तो क्या?? जो गुजरा हम पर वो...!!
किस्मत की बंदिश से भागे
किसी पल का बस एक आवारा पन था ??

Wo Kashish Wo Junun Hi Nahi
Jis se sanse buni jaati hain, muhobbat ko jinda rakhne ke liye
to kya? jo gujra hum par wo...!!
Kishmat ki Bandish se bhage
Kisi pal ka bas eak aawara pan tha??
By: Krishna Kumar vyas
(Kuch Adhure Panno Se)
http://www.facebook.com/groups/eksoch

Sunday, November 13, 2011

खारा पानी आज होंठों को अमृत सा मीठा लगा

ना जाने क्यों आँखों का खारा पानी आज होंठों को अमृत सा मीठा लगा!?
ना जाने क्यों ए मुसाफिर
पलकों से निकल होठों तक के फ़ासले मे इसे सदियों का वक़्त लगा!?

Na Jaane kyon aakhon ka khara paani aaj honthon ko amrit sa mitha laga!?
bas na jane kyon ae musafir..
palkon se nikal honthon tak ke faasle me ise sadhiyon ka waqt laga!?

By: Krishna Kumar Vyas

Wednesday, November 9, 2011

दफ़्न करना मुझे.... तेरे आगोश मे ही|

दर्द बन कर ही सही....मगर रहो मेरे दिल मे ही
अश्क बन कर ही सही....मगर छलकती रहो मेरी आँखों से ही
तू बेवफा ही सही....मगर मेरी सुबह-शाम हो तेरी ज़ुल्फों से ही
और जो गर तू उब गया हो मुझ से खेल कर या अब मंजूर ना हो मेरा जीना तुझे
तो कत्ल कर देना बैशक, मगर.... एक इरतजा है..
दफ़्न करना मुझे.... तेरे आगोश मे ही|

Dard Ban Kar Hi Sahi....Magar Raho Mere Dil Me Hi
Ask Ban Kar Hi Sahi....Magar Chalakti Raho Meri Aankhon Se Hi
Tu Bevafa Hi Sahi....Magar Meri Subah-Sham ho Teri Julfon Se Hi
or Jo Gar Tu Ub Gaya ho Mujh Se Kehl Kar ya ab Manjoor na ho mera jeena tujhe
to Katl Kar Dena Beshak, Magar....Ek Irtaja hey
Dafn Karna Mujhe...Teri Aagosh Me hi|

By Krishna Kumar Vyas(Eak Musafir)

Friday, November 4, 2011

बरसों से जिनका जवाब कभी मिला नही....

ए  मुसाफ़िर कश्मकश मे हूँ में कुछ सवाल लिए,
बरसों से जिनका जवाब कभी मिला नही....


एक तो ये के....
तन्हाइयों का फलसफा है की जो मुझे...
खुदा पे कभी यकीन ना रहा?!!
या फिर के खुदा पे यकीन नही इसी फकत
किस्मत मे तनहाईयाँ लिख दी गयी हैं मेरे!!?

दूजा ये की....
प्यास इतनी बड़ी तो ना थी मेरे दिल की !!
के जो आसमान भी पलट के सिमट गया
या फिर....,
काफ़िरों की किस्मत मे खुदा ने
सुकून का आँचल कोई लिखा ही नही??

कुछ दिनो से
ख्वाब पूछ रहे हैं की जब यकीन था मुझे
की हक़ीक़त की रोशनी मुक़द्दर मे उनके लिखी ही नही मेने
तो उनके वजूद मे आने का क्या सबब?
अजीब इतफ़ाक़ है
बरसों से कुछ एसी ही उलझन मे हूँ में भी
अब तक खुद के जिंदा रहने के सवाल पर...

ए मुसाफ़िर सुना था
बिना अश्कों के इस जहाँ मे खुशियों का सोदा होता नही...
बरसों इस उम्मीद मे रोता रहा हूँ...
फिर क्यों एक अदनि सी मुस्कुराहट का भी फूल कोई खिला नही???

हम राह के नाम पर बस एक परछाई संग चलती है,
पर अजब बात है!!,
कब से रंग भरने की कोशिश कर रहा हूँ अपनी परछाई मे
ना जाने मेरी किस्मत की तरह क्यों कम्बख़्त कालख इसकी भी जाती ही नही..????

कृष्ण कुमार व्यास
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Ae  Musafir Kashmakash me hun main kuch sawal liye,
barson se jinka jawab kabhi mila nahi....

Ek to ye ke....
Tanhayon ka falsafa hey ki jo mujhe...
khuda pe kabhi yakin na raha?!!
Ya fir ke Khuda pe yakin nahi isi fakat
Kismat me tanhaiyan likh di gayi hain mere!!?

Duja Ye Ki....
Pyas Itni Badi to na thi mere dil ki i!!
Ke jo aasman bhi palat ke simat gaya
Ya fir....,
Kafiron Ki Kismat me Khuda ne
sukun ka aanchal koi likha hi nahi??

Ae Musafir Kuch Dino Se
Khwab Puch rahe hain Ki Jab Yakin Tha Mujhe
Ki Haqeeqat Ki Roshni Mukadar me unke likhi hi nahi mene
To Unke Wajodd Me Aane Ka Kya Sabab?
Ajeeb Itafaq Hey
Barson se Kuch Esi Hi uljhan Me Hun Main Bhi
Khud Ke Jinda Rehne Ke Sawal Par...

 Ae Musafir Suna tha
 Bina Askon ke Is Jahan Me Khushiyon Ka Soda Hota Nahi...
Barson is umeed me rota raha hun...
Fir Kun adni si muskurahat ka bhi phool koi khila nahi???

Hum Raah Ke Naam Par Bas Eak Parchai Sang Chalti Hey,
Par Ajab Baat Hai!!!
Kab Se Rang Bharne Ki Koshish Kar Raha hun Apni parchai me
Naa jaane meri kismat ki tarah kyon Kambhakth Kaalakh iski bhi jaati hi nahi???

By: Krishna Kumar Vyas