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Friday, October 29, 2010

बड़ी बेशर्म होती हैं ये यादें


बड़ी बेशर्म होती हैं ये यादें ...
बड़ी बेरहम होती हैं ये यादें..

ना वक्त्त- बेवक्त्त का ही लिहाज कोई
ना माहौल का ही कोई ऐहतराम

ना दस्तक की ही समझे जरुरत कभी..
ना इजाजत  के लीए ही कोई तक्कलुफ़

बेखौफ...
बेखौफ... बस चली आ जाती है..

यादों का...
कभी शुक्राना भी अदा करने को जी  चाहता है..
जब तन्हा दिल..
तन्हाई से ऊब जाता है...

ये यादें...
आगोश में ले लेती है
बिलकुल  महबूब की ही तरह्
रुठती भी है... मनाती भी है
वक्त्त के ठहरे होने का...
अजब अहसास करा देती है...

फिर नफरत भी हो उठती है..और
 कांटो सी चुभती हैं..

बेईमान कहीं की ये...यादें

बेईमान ये यादें खुराफाती में
अश्कों का सैलाब...साथ ले आती है

तस्वीर बन कर अपनो की खडी हो जाती है
जिनहै ना छू संकू ना पा संकू
बस बेबसी ही बेबसी रह जाती है..
...............................

बड़ी बेशर्म होती हैं ये यादें ...
बड़ी बेरहम होती हैं ये यादें..

by Krishna vyas

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Badi Be-sharm hoti hain ye yadain...
Badi Be-reham hoti hain ye yadain

na waqt ka lihaj
na mahol ka hi koi ehtaram...
...
na koi dastak ki hi samjhe zaroorat kabhi
na ij-jat ke liye hi koi tak-aluf

bekhof...
bekhof..bas chali aajati hain...

yadon ka
Kabhi sukrana bhi ada karne ki ji chahta hey
Jab Tanha dil...
Tanhai se ub jata hey

ye yaadain...
Agosh mai le leti hain...
bilkul mehbub ki tarah
ruthti bhi hai.. manati bhi hain...
waqt ke thah-re hona ka
ajab ehsas kara deti hain

fir nafrat bhi ho uthti hey or
kanto Si Chubti hain ye jab
baiman kahin ki ... ye yadain..
baiman ye yadain khurafati main
askon ka selab saath le aati hain

Tasvir ban kar apno ki khadi ho jati hain
jise na chu sakun... na paa sakun
bas bebasi hi bebasi reh jaati hai....
...........................................

Badi Be-sharam hoti hain ye yadain...
Badi be-reham hoti hain ye yadain

by Krishna vyas(ek soch)

Wednesday, September 22, 2010

Khuda ka Khof Chod aaya Hun

तेरे दर के बाहर,
ख़ुदा का खोफ़ छोड़ आया हूँ।

ना दिखा खोफ़ मुझे खुदाई का,
ना बता के गुनाहों की सजा होती हे।
के गर होता ख़ुदा...
तो तू ना यूँ बीक रही होती,
ना मैं तूझे खरीद ही रहा होता।


Tere Dar ke Bahar,
Khuda ka Khof Chod aaya Hun,

Na Dikha Khof Mujhe Khuda ka
Na bata gunahon ki saja kya hoti hey,

gar hota khuda...

to tu na yun Bik Rahi Hoti
Na main Tujhe Khareed Raha Hota.

Friday, September 17, 2010

बड़ा अजीब इत्तेफ़ाक है....

बड़ा अजीब इत्तेफ़ाक है....
तीन अजनबियों की सजी है महफिल

एक मै हू, एक् मेरी परछाई और एक चिराग है।

कई सदियों की तन्हाई के बाद
मिला आज फिर किसी का साथ है,
बडा अजीब
इत्तेफ़ाक है....
तनहा खामोशियो की बस
हो रही आज मुलाकात है

तीनो मे
शब्दो की कोई जगह नही...
कोई दुआ कोइ सलाम तक नही
बस
अपनी अपनी किस्मत पे लगे
बद के पेब्न्द् का दर्द्
साफ़ साफ़ है
बड़ा अजीब
इत्तेफ़ाक है....
सासे मिली तो है...
मगर जैसे कोई उधार् है।

बड़ा अजीब
इत्तेफ़ाक है....

by Krishna vyas(ek soch)

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Bada Ajeeb Itafaq hey...
Teen ajanbiyon KI saji hey Mehfil

Ek main hun, Ek Meri Parchani or Ek Chirag Hey

Kai Sadiyon Ki Tanhai Ke baad...
Mila aaj fir Kisi Ka saath Hey...
Bada Ajeeb Itafaqq Hey
Tanhan Khamoshiyon ki bas Ho rahi aaj Mulakat Hey..
Bada Ajeeb Itafaq hey


Sabdon ki koi jagah nahi
Koi Duaa Koi Salam Tak Nahi
Bas Apni Apni Kismat pe lage
Bad ke Peband Ka Dard Saaf Saaf hey.

Bada Ajeeb Itafaak Hey..
Sanse mili to hain magar jaise kOi Udhar Hey.

Wednesday, September 15, 2010

एक आँसू सवाल लिए खड़ा है

एक आँसू सवाल लिए खड़ा है
पलकों के किनारे,

एक कदम और आगे
बस फिर दर्द का साथ छूट जाएगा..
एक कदम और आगे..
पर फिर बेरहम दुनिया के पैरो तले
कुचला भी तो जाएगा..

जब तक पलकों पर ठिठका है..
' अनमोल ' है..
किसी के दिल का हाल और
दिल के बेहद करीब है

एक कदम और आगे..
फिर बस..
सर-ए-बज्म निलाम किया जाएगा..

"इस कशमकश मे लो बह गया..."

देखो मगर किस्मत
कि 'जो होठ'..

कई बार मिन्न्ते करने पर भी
ना खुले दिल का हाल कहने के लिए
बेरहम बन गए
और न जाने क्या सोच के
कि आँसू पड़े औरो कि नजर मे
उससे पहले....
खुद ही पी गए।

by Krishna vyas(ek soch)

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Ek ansu sawal liye khada hey
palkon ke kinare,

ek kadam or aage
bas fir dard ka saath chut jayega,

ek kadam or aage
Or beraham duniya ke peron tale
kuchla bhi to jayega
...
jab tak palkon par thithka hey
anmol hey,
kisi ke dil ka haal or
dil ke behad kareeb hey

ek kadam or aage fir bas
sar-e bajm nilam kiya jayega

kasmkash main lo beh gaya...

dekho magar kismat,
ke jo honth kai bar minat karene par bhi
na khule dil ka haal kehne ke liye

beraham ban gaye or na jane kya soch ke
ansun pade oron ki najar main...
us se pehle pi gaye...

Sunday, May 30, 2010

मैं आज खुल कर फिर बच्चों की तरह रोना चाहता हूँ..

मैं आज खुल कर फिर बच्चों की तरह
रोना चाहता हूँ..

चेहरे पे चेहरे लगाऐ है कई,
हर् बार् इस् दुनीया मे..
दुनिया दारि निभाने के लिये...

खुद् के भुले हुए चेह्ररे को
फिर् तलाशना चाहता
हूँ...

मैं आज खुल कर फिर बच्चों की तरह रोना चाहता हूँ..
.

आडम्बर् के कोलाहल् से घिरा हूआ
हूँ
किसि ओर् को क्या कहूँ..
खुद् हि इस्का हिस्सा बना हूआ
हूँ..

पर् अब् थकान् बढने लगी हे..

पर् अब् थकान् बढने लगी हे..अप्ने हि शोर् कि
कहि थम् कर् ... रुक् कर्
खुद् कि खामोशि को...सुन्-ना चाह्ता हु...
मैं आज् खुल् कर् फिर् बच्चो कि तरह्
रोना चाहता
हूँ..

अपनो से मिला हु.. अक्सर् गेरो कि तरह्..
खुद् को सम्झा आस्मान्.. ओर् उनहे जर्रो कि तरह्
फिर् टुट् क्रर अपनो कि बाहो मै...बिखर् जाना चाहता
हूँ
मैं आज खुल कर फिर बच्चों की तरह रोना चाहता हूँ..

by Krishna vyas(ek soch)

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Main aaj khul kar fir bachon ki tarah
rona chahta hun...

Chehre pe Chehre lagaye hain
...har baar is duniya main,
duniyadari nibhane ke liye

Khud ke bhule hue chehre ko
fir talashna chahta hun..

Aadambar ke kolahal se ghira hua hun
kisi or ko kya kahun,
khud hi is-ka hissa bana hua hun..
ab thakan badhne lagi hey...

ab thakan badhne lagi hey...
apne hi shor ki
kahin tham kar...Ruk kar
khud ki khamoshi ko sun-na chahta hun..

Apno se mila hun aksar.... Geron ki tarah..
Khud ko samjha aasman or unhe jar-ron ki tarah
fir Tut kar apno ki bahon main bikhar jaana chahta hun

Main aaj khul kar fir bachon ki tarah
rona chahta hun...

Friday, May 14, 2010

"होड़" ही तो बस... बच गई हे अब...

सुबह से शाम कि दोड मे...
लोगों  से तैज चलने की
"होड़" ही तो बस...
बच गई  हे अब...
मंज़िल ..
मंज़िल का तो खयाल तक ही नहीं ..
मंज़िल ... का अर्थ तो रुकना हे..
सोच् को सोचना हे..
कहीं  ना कहीं...तो रुकना ही है
"आखिर".


मगर इस खयाल का क्या करैं !!
जो...
खुद के थम ने पर...
ओरों को दोड़ते  नहीं  देख सकती ...

सो छोड् अपने सप्नो का...
तिन्को तिन्को से जोड़ा आशियाना.
फिर ..
लोगों  से तेज़ चलने कि "होड़ ...
"होड़" ही  तो बस...
बच के रह गयी  है  अब...

Wednesday, May 5, 2010

व्रक्छ् कि साखो से लट्का फल जमिन् पर गिर्ने से डरता हे...


व्रक्छ् कि साखो से लट्का फल जमिन् पर गिर्ने से डरता हे...

साखो को ही सम्झे अप्ना भगवान् .. छुना चाहता वो आस्मान् ...
रिष्ता क्या हे माटि से... भुल् गया वो ???

अप्ने रस् यौवन् पे इतराता...
भुल् गया हे के ... गर् ओरो कि तरह् ये भि माटि से मिलने से युहि डर्ता रहा ...
तो नया व्रक्छ् कहा से आयेगा ???

सोचता वो के ख्त्म हो जायेगा....सोचता कुर्बानि देकर् वो क्या पायेगा ???
भुल् गया !!!

मगर् भुल् गया ...इस् नये व्रक्छ् से धरा का आन्च्ल् ओर् हरा होगा...
पन्छिओ को मिलैगा नया बसेरा...
ओर जब् लगैन्गे उसि के समान् फल् उस् व्रक्छ् मै
वो फल...

वो फल् सदा के लिये 'अमर्' हो जायेगा...

by Krishna vyas(eak Musafir)