व्रक्छ् कि साखो से लट्का फल जमिन् पर गिर्ने से डरता हे...
साखो को ही सम्झे अप्ना भगवान् .. छुना चाहता वो आस्मान् ...
रिष्ता क्या हे माटि से... भुल् गया वो ???
अप्ने रस् यौवन् पे इतराता...
भुल् गया हे के ... गर् ओरो कि तरह् ये भि माटि से मिलने से युहि डर्ता रहा ...
तो नया व्रक्छ् कहा से आयेगा ???
सोचता वो के ख्त्म हो जायेगा....सोचता कुर्बानि देकर् वो क्या पायेगा ???
भुल् गया !!!
मगर् भुल् गया ...इस् नये व्रक्छ् से धरा का आन्च्ल् ओर् हरा होगा...
पन्छिओ को मिलैगा नया बसेरा...
ओर जब् लगैन्गे उसि के समान् फल् उस् व्रक्छ् मै
वो फल...
वो फल् सदा के लिये 'अमर्' हो जायेगा...
by Krishna vyas(eak Musafir)
No comments:
Post a Comment