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Monday, December 26, 2011

काश हर उस पल मे भी होता

कभी अपने बालों को सिराहने सुला कर सहलाना,
कभी आईने मे खुद को देखते हुए गुम हो जाना...
कभी अपनी ही अदाओं पे इठलाना,

काश हर उस पल मे भी होता वही किसी कोने मे...
वक़्त की तरह ठहरा ठहरा सा..

तकिए से जब लिपटती तुम...
मैं आहैं भरता,
तेरी गर्म साँसों को करने महसूस...
अपनी धड़कनों को मैं रोक लेता,
होठों को जब दातों तले दबाती तुम...
मैं अपनी किस्मत से लड़ पड़ता,

काश उस हर पल मैं भी होता वहीं किसी कोने मे...
वक़्त की तरह ठहरा ठहरा सा..

kabhi apne balon ko sirahne sula kar sehlana,
kabhi aaine me khud ko dekhte hue gum ho jana...
kabhi apni hi adaon pe ithlana,

kash har us pal me bhi hota wahi kisi kone me
waqt ki tarah thehra thehra sa...

takiye se jab lipati tum...
main aahain bharta,
teri garm sanso ko karne mehsus...
apni dhadkano ko main rok leta,
hothon ko jab daton tale dabati tum...
apni kismat se lad padta,

kash us har pal me bhi hota wahin kisi kone me...
waqt ki tarah thehra thehra sa.

By: Krishna Kumar Vyas

Monday, December 19, 2011

मेरी राख से फिर किसी ख्वाब - किसी ख्याल को होसलों की परवाज़ मिले..||


मेरी राख से फिर किसी ख्वाब - किसी ख्याल को होसलों की परवाज़ मिले..||

कुछ ख्याल कुछ ख्वाब जो सुबह की धूप के संग चढ़े...
ढलते हुए फिर किसी एक शाम मिले
कुछ हारे हुए से...कुछ अधूरे थके थके से....
कुछ मुक्कमल पहचान लिए मिले..


"जब ढलना ही था...तो फिर उड़ान क्यों
मुझ जैसे मुसाफिर भी फिर बेतुके सवाल लिए मिले"


हारे हुए से ने कहा
कुछ आँसू खुशी मे छलके
कुछ गुम के बोझ से
मगर जो छलक ही जाते हैं आँखों से
तो वो सारे तमाम खाक मे ही मिले

अधूरे थके थके से ने कहा
उड़ान उँची रही....सूरज से भी गुथा गुथि रही
पंखों का दोष था
किस्मत ने लिखी थी थकान उनके बस इसी फकत
पैरों के निशान मेरे फिर किसी खाक पे मिले

मुक्कमल पहचान लिए ने बस मुस्कुरा दिया
कहा...
"जो छलक गये वो मेरे होठों से लिपटे
और ना संभाल पाए जिन्हें होंठ तो वो मेरे दामन से मिले..."

"जहाँ पंखों ने साथ छोड़ दिया
वहीं मुझे लेकर मेरे होसले उड़े"..

मंज़िल...मंज़िल तो बस एक पड़ाव है
और ढलना एक नियम
मगर मुक्कमल होकर ढलूं ताकि
मेरी राख से फिर किसी ख्वाब - किसी ख्याल को होसलों की परवाज़ मिले..||

कुछ ख्याल - कुछ ख्वाब जो सुबह की धूप के संग चढ़े...
ढलते हुए फिर किसी एक शाम मिले|






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IN Hinglish

Kuch Khyal Kuch Khwab jo subah ki dhup ke sang chadhe...
Dhalte hue fir Kisi Ek sham mile
Kuch Hare hue Se...Kuch Adhure Thake Thake....Kuch Mukamal Pehchan liye mile

"Jab Dhalna hi tha...to fir udan kun
Mujh Jaise Musafir bhi fir betuke sawal liye mile"

Hare hue se Ne Kaha
Kuch Aansu kushi me chalke
Kuch gum ke bojh se
magar jo hi chalk jate hain aankhon se
to wo sare tamam khak me hi mile

Adhure Thake Thake se ne Kaha
Udan unchi rahi....
suraj se bhi gutha guthi rahi
Pankhon ka dosh tha
Kismat Ne Thakan likhdi thi  inke bas isi fakat
Peron Ke Nisan mere fir kisi khak pe mile

Mukamal Pehchan liye ne bas muskura diya
Kaha Jo Chalak Gaye wo Mere hothon se lipte
or na sambhal paye jinhe honth mere wo mere daman se mile

jahan pankhon ne saath chod diya
Wahin Mujhe Lekar Mere Hosle Ude

Manjil...Manjil to bas ek padav hey
Our Dhalna Ek Niyam
Magar Mukkam hokar dhalun taki
Meri Rakh se fir Kisi Khwab - Kisi Khayal ko Hoslon ki Parwaz mile

Kuch Khyal Kuch Khwab jo subah ki dhup ke sang chadhe...
Dhalte hue Fir Kisi Ek sham mile

By: Krishna Kumar Vyas
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/ek-musafir/entry/%E0%A4%AE-%E0%A4%B0-%E0%A4%B0-%E0%A4%96-%E0%A4%B8-%E0%A4%AB-%E0%A4%B0-%E0%A4%95-%E0%A4%B8-%E0%A4%96-%E0%A4%B5-%E0%A4%AC-%E0%A4%95-%E0%A4%B8-%E0%A4%96-%E0%A4%AF-%E0%A4%B2-%E0%A4%95-%E0%A4%B9-%E0%A4%B8%E0%A4%B2-%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%B5-%E0%A4%9C-%E0%A4%AE-%E0%A4%B2