jeevan ki raah ke kuch palon ka anubhav...किस्मत के हाथों बँधे इन निगाहों ने ना जाने क्या क्या देखा.. पर देखा जिसे बस खूने जिगर पीते देखा, पहले रोते थे मरने वालों पर... अब आँखें छलक गयी जब किसी को जीते देखा| Kismat ke hathon bandhe in nigahon ne, na jaane kya kya dekha... par dekha jise bas khune jigar pite dekha... pahle rothe the marne valon par.. ab aankhain chalak gayi jab kisi ko jite dekha
Sunday, August 28, 2011
शायर का क्या है....
Monday, August 15, 2011
आजादी के आज नारे तो खूब लगा लेंगे|
हम आजाद हैं
ऐसे आजादी के नारे खूब लगा लेंगे
हे १५ Aug तो फिर रिवाज ऐ जस्न मना लेंगे
पर एक नजर अपने जमींर भी ड़ाल देना कम से कम आज मगर
मन के आईने मैं झांक लेना एक पल को आज फकत्त
हम जो अब भी गुलाम हैं
भ्रस्टाचार के,
स्वार्थ भरे अचार के,
ह्रदय में भरे "मैं" और अपने पाप से
कैसे तिरंगा लहरा लेंगे?
सोचो,
अपनी जो बीत गयी सो बीत गई
मगर
तिरंगे में सिमटा बीती पीढ़ी का रक्त
और आने वाली पीढ़ी का कल
क्या सब कुछ मिटी में मिला देंगे?
आजादी के आज नारे तो खूब लगा लेंगे|
जय हिंद
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर
अपने पाप से कैसे मुक्त हो जाऊं फिर||
आसुंओं में नहा कर देखा,
गंगा तट भी जाकर देखा,
गंगा तट भी जाकर देखा,
ग्लानी अपने कर्मों की नहीं होती फिर भी छीण|
मन का ये भार कैसे उतारूँ फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|
सोचूं कभी,
धोखा दिया जिन्हें,
सोचूं कभी,
धोखा दिया जिन्हें,
अपना बन गैरों सा घाव दिया जिन्हें,
जिनके संग हर पल मैंने कटुलाई की,
भय निकाल अपने अपने मन का,
अभिमान तज अपने "मैं" का
उनके चरणों में गिर जाऊं फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|
कैसे मुक्त होजाऊं फिर|
आँच सच्चाई की
उम्र के साथ बढ़ने लगी हे...
अब तो स्वप्न में भी,
कांटो सी...
कर्म की हर स्मृति डसने लगी है
कर्म की हर स्मृति डसने लगी है
आंसू दे डाले जिनकी आँखों में...
"अन्तविहींन"
"अन्तविहींन"
उनके होंठो की कैसे मुस्कराहट बंजाऊं फिर| .
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर|
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर|
वक्त हुआ बहुत दर्पण में खुद को देखे हुए!
जिस पर माँ लेती थी बलाइयां!
जिस पर माँ लेती थी बलाइयां!
वो मासूमियत!, वो खिलखिलाहट!
वो भोलापन!..वो सच्चाई का नंगापन!
वो चेहरा!...कैसे पाऊं फिर?
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर?
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर??
अब आखरी उम्मीद अंतिम यात्रा में ही नजर आती है
अब आखरी उम्मीद अंतिम यात्रा में ही नजर आती है
स्वाह करूँ इस पापी तन और मन को
अपनी ही विवशता के यग्न में,
अंत - अंत काल तक सो जाऊं फिर ?
कैसे मुक्त हो जाऊं फिर?
अपने पाप से कैसे मुक्त हो जाऊं फिर??!
Monday, August 1, 2011
उसे यकींन था, वो ना होगी संग तो क्या!?
उसे यकींन था,
वो ना होगी संग तो क्या!
उसकी यादें तो होंगी ही...
धड़कने बन मुझे "जिन्दा" रखने के लिए।
शायद, इसी लिए
रुखसत होते इस जहाँ से....
ना माथे पे थी शिकन उसके..
ना आँखों में ही था कोई आंसू उसके।
-------------------------------
"आखरी सांस तक"..
आखरी सांस तक,
वो मुझे हंसने के लिए मनाती रही।
मैं करता भी क्या??
मेरी बेबसी मुझे रुलाती रही।
"आखरी " पलों में ....
वो संजोना चाहती थी,
मेरा हँसता चेहरा अपनी पलकों में। ....
नादान!
नादान! समझ न पायी...
के, कैसे पूरी होती उसकी ये ख्य्वाइश भी !!
के, गर होता "दिल"।
"उस खुदा" के "सिने" में
तो यूँ "मौत" बन "जुदाई" आती नहीं...
पर शायद...
उसे यकींन था,
वो ना होगी संग तो क्या!उसकी यादें तो होंगी ही...
धड़कने बन मुझे "जिन्दा" रखने के लिए.............
By - Krishna Kumar Vyas
www.eakmusafir.blogspot.com
https://www.facebook.com/groups/eksoch
Use Yakin Tha,
Wo Na hogi sang to kya!
uski Yaadain to hongi hi....
Dhadkane ban Mujhe Jinda Rakhne Ke Liye
Na Maathe pe thi shikan uske
Na aankhon me hi tha koi aansu uske...
Aakhri Saas tak
Aakhri Saas tak
Wo Mujhe Hasne ke liye manati rahi
Main kar ta bhi kya
Meri Bebasi Mujhe Rulati rahi
"Aakhri " palon me ....
Wo Sajona Chahti thi
Mera hasta chehra apni Palkon me....
"naadan " ....
naadan Samajh na paayi
ke, Kaise Puri hoti Uski ye khvyaish bhi ??
Ke Gar Hota Dil
Khuda ke Sine Me Bhi
To Yun Mout Ban Judai Aati Nahi...par saayad
Use Yakin Tha,
Wo Na hogi sang to kya!
uski Yaadain to hongi hi....Dhadkane ban Mujhe Jinda Rakhne Ke Liye
By Krishna Kumar Vyas
वो ना होगी संग तो क्या!
उसकी यादें तो होंगी ही...
धड़कने बन मुझे "जिन्दा" रखने के लिए।
शायद, इसी लिए
रुखसत होते इस जहाँ से....
ना माथे पे थी शिकन उसके..
ना आँखों में ही था कोई आंसू उसके।
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"आखरी सांस तक"..
आखरी सांस तक,
वो मुझे हंसने के लिए मनाती रही।
मैं करता भी क्या??
मेरी बेबसी मुझे रुलाती रही।
"आखरी " पलों में ....
वो संजोना चाहती थी,
मेरा हँसता चेहरा अपनी पलकों में। ....
नादान!
नादान! समझ न पायी...
के, कैसे पूरी होती उसकी ये ख्य्वाइश भी !!
के, गर होता "दिल"।
"उस खुदा" के "सिने" में
तो यूँ "मौत" बन "जुदाई" आती नहीं...
पर शायद...
उसे यकींन था,
वो ना होगी संग तो क्या!उसकी यादें तो होंगी ही...
धड़कने बन मुझे "जिन्दा" रखने के लिए.............
By - Krishna Kumar Vyas
www.eakmusafir.blogspot.com
https://www.facebook.com/groups/eksoch
Use Yakin Tha,
Wo Na hogi sang to kya!
uski Yaadain to hongi hi....
Dhadkane ban Mujhe Jinda Rakhne Ke Liye
Sayad..Isi liye
Rukhsat hote is Jahan SeNa Maathe pe thi shikan uske
Na aankhon me hi tha koi aansu uske...
Aakhri Saas tak
Aakhri Saas tak
Wo Mujhe Hasne ke liye manati rahi
Main kar ta bhi kya
Meri Bebasi Mujhe Rulati rahi
"Aakhri " palon me ....
Wo Sajona Chahti thi
Mera hasta chehra apni Palkon me....
"naadan " ....
naadan Samajh na paayi
ke, Kaise Puri hoti Uski ye khvyaish bhi ??
Ke Gar Hota Dil
Khuda ke Sine Me Bhi
To Yun Mout Ban Judai Aati Nahi...par saayad
Use Yakin Tha,
Wo Na hogi sang to kya!
uski Yaadain to hongi hi....Dhadkane ban Mujhe Jinda Rakhne Ke Liye
By Krishna Kumar Vyas
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