चन्द सांसे उधार की,
पल दो पल ही सही, सुकून तो मिला
खेल किस्मत का,
मेहबूब के संग पल दो पल की गुफ्तूगू
ख्वाब अधूरा सा दफ्न होने से पहले ही सही,
हक़ीक़त की चाँदनी से तो मिला
कुछ अधूरे पन्नो से...
एक मुसाफिर (krishna kumar vyas)
पल दो पल ही सही, सुकून तो मिला
खेल किस्मत का,
मेहबूब के संग पल दो पल की गुफ्तूगू
ख्वाब अधूरा सा दफ्न होने से पहले ही सही,
हक़ीक़त की चाँदनी से तो मिला
कुछ अधूरे पन्नो से...
एक मुसाफिर (krishna kumar vyas)
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