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Tuesday, March 30, 2010

मुस्कुराहट का कफ़न,

मुस्कुराहट का कफ़न,
कितनी भी ईमानदारी से,
ओढ़ा दो होठों पे अब

पलकों के किनारे,
बेशर्मी से बता रहे हैं, 
चीख चीख कर..
रातें बीत रहीं है...
अश्कोंके पहलूंमेंअब, 

और.. तेरे
गम छुपा लेने से भी....
कयामत ना रुक पाएगी ...

सुना है..
खुदा का भी सीना
फॅट पड़ा है ..
इस दफ़ा अब|

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