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Tuesday, December 29, 2009

Kaise kahun mujhe tera saath kaisa laga

Kaise kahun mujhe tera saath kaisa laga

Tujh Bin Jivan tha jaise... Ragistan Koi
Ragistan kahan se laye aise alfaj jo keh sakain... Use Savan ka saath Kaisa Laga.

Main Janta hun.. Ke tum koi Bhagwan ya khuda nahi
Raat Ko din or Din ko raat main badal nahi sakte
Magar Muskilon main...
vo tera dena mera saath...apne hathon main le mera haath

wo tumhara sparsh jaise hai jadu koi...
Fir har rasta aasan laga

Kaise Kahe bhatka musafir...
Use Manjil Pana kaisa laga...

Main janta hun Aksar Ruth jata hun main
Tum khuda ki mujh par inayat ho.. Fir bhi lad padta hun main\

Ahmiyat de de ta hun mu se jyada kabhi kabhi
choti chot baton ko... ke kya karun hun to Ek Insan hi...

Apne beach panpi Kadwahat ko
Apni sehansilta se Tumne Di mithas.. Har Baar

Kaise Kahe Koi .... Insan...
Use Swapnapari ka Saath Kaisa Laga.

गंगा स्नान को भी तो जाता हूँ main

Thokar lagti hey jahan jahan

Ek khawab naya sajata hun main...

or purane khwabon ki majar pe..
odha naye wadon ka kafan...
uski aatma ko sula deta hun main..

Thokar lagti hey jahan jahan...

Kehta hun logon ko, ke bhagna hey bujdilon ki nisani

Kehta hun logon ko....
Ke bhag jana hey Bujdilon ki nisani.

Keh ke jamane ko bujdil, khud so jata hun main.

Na samjhe kabhi koi.... Gunahgar Hamain

Na Samjhe kabhi koi... Gunahgar hamain
Ke... bahot mustaid hai Zameer yaraon mera

Gar kar bhi liya koi paap to kya..

gar Kar bhi liya koi paap to kya..
Har saal ganga snan ko bhi to jata hun main.

Sunday, December 13, 2009

तेरा खुदा सच्चा हे या मेरे इश्वर मैं है दम



क्या फ़र्क पड़ता हे?
के तेरा अल्लाह सच्चा है, या मेरे ईश्वर मैं है दम!

एक दुआ कर तू खुदा से,
एक पुकार उठे, ईश्वर के लिए मेरी हलक से
"के चमन मे अमन रहे।"
"ना बहे लहू इंसान का इंसान से।"
"ना हो टुकड़े अब फिर कभी मासूम दिलों के।"
"ना उठे जनाजा फिर बेटे का बाप के कन्धों पे।"
"ना आए आँच अपने बहनो के दामन पे|"
फ़िर चाहे जो भी सुन ले..... ये पुकार !
चाहे वो खुदा हो या भगवान।।
जब होगा प्यार सब जगह|
तब फ़िर क्या फ़र्क पड़ जाएगा?
के तेरा खुदा सच्चा हे या मेरे इश्वर मैं है दम।

तू भी और मैं भी,
अपने अपने विश्‍वास को असीम मानते हैं।
मानते हैं, के
एक पत्ता भी नहीं हिलता उसकी मर्ज़ी के बगेर,
हवाएँ चलती हैं जब वो कहता है,
आसमान झुकता है जब वो चलता है...
क्या उस रोशनी को...
तेरी - मेरी जरूरत है?
उसे साबित करने की?
तो फ़िर क्‍यों धोखा देता है उसे भी और खुद को भी,
क्यों?
"तू" खुदा का खुदा बनता है|"
क्यों?
"तू" ईश्वर के नाम पर अपने स्वार्थ का खेल रचता है|"

अरे, क्या फ़र्क पड़ता है?
के तेरा अल्लाह सच्चा है, या मेरे ईश्वर मैं है दम!

हाँ मगर यकीं है मुझे ,
वो ताक़त, वो रोशनी वो सुकून जो भी है....,
चाहे उसे अल्लाह कहो या भगवान!!
दिल रोता होगा उसका भी
जब तू और मैं इन्सान से इन्सान की जगह गैरों सा मिलता है।
सोच...एक बार फिर से..
क्या फ़र्क पड़ता हे?
के तेरा अल्लाह सच्चा है, या मेरे ईश्वर मैं है दम!

by - कृष्ण कुमार व्यास, dated १३ dec 2009
Pic from internet....