ShareThis

Thursday, July 1, 1993

माटी से फिर माटी बन गया

पहाडों से पत्थर बना
पत्थर से बना माटी
माटी बनते ही निद्रा ने आ घेरा मुझे
आँख खुली देवता के सिर मौर पाया
तिलक - पुष्प, आरती - पूजा
हार गले में और चढावा
देख देख में इतराया
गर्वित हुआ,
सोचा, वाह ! कैसा मैंने भाग्य पाया
----------------------------

खत्म हुआ ज्योंही त्यौहार
उखाड़ फ़ैंका मुझे
फिर आना फिर आना
कह कर डूबा दिया मुझे
क्रोधित हुआ
श्राप दिया...जोर जोर से मै चिल्लाया,
पल में इश्वर!!...
पल में कूड़ा??,
कैसी हे ये माया!!??
प्रकाश हुआ ज्ञान बुद्धि पर तभी
द्वेष, क्रोध, मोह माया???

"ये तो सब इंसानों की काया"

त्रुटियाँ या गुण
मुझ माटी मैं कैसे आया?!!!...

शान्त हो गया...
विसर्जित हो गया॥ माटी से फिर माटी बन गया